अभी कुछ दिन पहले की
ही बात है, पानी की पाइप लाइन में जामुन की बीज़ फंसा देखा, हवा पानी और नमी पाकर
वो एकाएक अंकुरित होने लगा, कोंपले फूट आयी। हवा को छूने के लिए उसके पत्ते ऊपर की
ओर बढ़ने लगे। अनायास ही मैनें उस पुष्पित पल्लवित होते नये मेहमान को तुलसी माँ
के सान्निध्य में, उनके गमले में रोप दिया। उससे एक आत्मीयता से बन गयी। जैसे मेरे
अस्तित्व से निकला आत्मज् हो। आत्मीयता का ये अध्याय ना जाने कब स्नेह की गली से
होते हुए प्रेम की दहलीज़ पर आ गया पता ही नहीं चला। रोज उसको निहारना, उसके बढ़ते
हुए कोमल और स्निग्ध पत्तों को देखना आदत सी बन गयी। उसमें पानी डालने से ठीक वहीं
भावना निकलती थी, जो शायद मांओ को नवजातों शिशुओं को दुग्धपान कराने में मिलती है।
एक दिन माता जी का हुक्म आया कि, जामुन के पौधे को तुलसी के गमले से निकालकर कहीं
और रोप दिया जाये, नहीं तो ये तुलसी को बढ़ने नहीं देगा। बाऊ जी ने उसे उखाड़कर
टूटी बाल्टी में मिट्टी मिलाकर रोप दिया, थोड़े दिन तक तो वह मुरझाया रहा, इस
दौरान मेरी जान सूखती रही। वक्त ऐसा भी आया जब उसके तनों में हरियाली प्रतिस्फुटित
होने लगी। दिल को थोड़ा सुकून आया कि, चलो अब ये बच जायेगा। लेकिन होनी को कुछ ओर
ही मंजूर था। एक दिन बंदरों का झुंड आया और उधम कूद के बीच गमले से जामुन के उस
पौधे को उखाड़ दिया। आज वो पूरी तरह से सूख गया है। थोड़ा बहुत मैं परेशान हुआ,
इसी जद्दोजहद में घर से बाहर निकला और रास्ते में से बटोर के कुछ जामुन के बीज
लाया और भावावेश में उन सभी को उसी बाल्टी में रोपा दिया। आज तस्वीर ये है कि
पुराना वाला पौधा बिल्कुल सूख गया लेकिन मैनें उसे बाल्टी में से निकाला नहीं
बल्कि उस सूखे पौधे को कुछ नये सहचरों का साथ मिला है। आज उसके इर्द-गिर्द तकरीबन
आठ दस पौधे निकल आये है। यहीं उसके और मेरे बीच का प्रेम था, जहाँ उसका अस्तित्व
खत्म होते देख मैनें नये पौधों को रोपा। शायद इसी को प्रेम मार्ग में उत्कृष्टता
और परिपूर्णता कहा गया है, जहाँ पर आपकी चाहत का वजूद तो खो चुका है, लेकिन उसकी
निशानियां और राहें आपके इश्क को मुकम्मल कर रही है।
- राम अजोर
एक्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर एवं सह संपादक ट्रेन्डी न्यूज़
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