
दूसरी कहानी जयप्रकाश और सुनीता की है। दोनों 2004 में कोयम्बटूर में स्कूली दोस्त थे। दोनों के बीच बातें होती थीं, लेकिन धीरे -धीरे दोनों अपनी जिंदगी में व्यस्त हो गए। सुनीता बेंगलुरु चली गईं। तीन साल बाद जयप्रकाश को उनके जन्मदिन पर फ़ोन आया, दूसरी तरफ आवाज़ सुनीता की थी। जयप्रकाश को अपना स्कूल का प्यार फिर याद आ गया। इसके बाद समय-समय पर उनकी बातचीत होती रही। फिर एक लंबे समय के लिए संपर्क कट गया। 2011 में जयप्रकाश को अचानक एक मित्र का फ़ोन आया कि सुनीता का एक्सीडेंट हुआ है, वह कोयम्बटूर में एडमिट है। आप चाहे तो उनसे मिल सकते हैं। जयप्रकाश जब हॉस्पिटल गया एक ऐसे व्यक्ति को देखा, जिसका कोई बाल नहीं था, एसिड से एक जला हुआ चेहरा, कोई नाक नहीं, कोई मुंह और कोई दांत नहीं था, 90 साल के व्यक्ति की तरह चल रहा था। उसने कहा,मैं दंग रह गया था। मैं टूट गया। उस पल, मुझे एहसास हुआ कि मैं उससे प्यार करता हूं। उस रात के बाद, मैंने उसे एक खत भेजा। मैं एकमात्र व्यक्ति हूं जो आपकी देखभाल कर सकता है। मैं तुमसे प्यार करता हूँ। चलो शादी करते है। उसने फोन किया और मैंने फिर से प्रस्ताव रखा। वह हंसी लेकिन उसने ना नहीं कहा। शुरू में मेरी माँ हैरान थी लेकिन मेरे पिताजी ने मेरा साथ दिया और आखिरकार वे दोनों साथ आए। 2012 में सुनीता की दर्जनों सर्जरी हुई ,वह उसके साथ हर कदम पर खड़ा रहा। 26 जनवरी 2014 को सुनीता ने 3 गुलाबों के साथ जयप्रकाश को प्रपोज किया,उसी दिन उनकी सगाई हो गई। और शादी भी। अब दोनों के आत्मीया और आत्मीक जैसे दो प्यारे बच्चे हैं। जयप्रकाश कहते हैं,'प्रेम किसी चेहरे या थोपे गए हालात या बाहरी सुंदरता के बारे में नहीं है। यह आत्माओं का संबंध है।
साल 2005 में चलते हैं। जयपुर। खुशमिज़ाज, रंगीन, ख़ूबसूरत शहर। मोहिनी नाम की एक लड़की अपने दफ्तर के लिए जा रही थीं। नई जॉब का दूसरा दिन था। वो उत्साहित थीं और जल्दी में थीं। रास्ते में एक लड़के ने उन पर तेजाब की पूरी बॉटल उड़ेल दी। मोहिनी किस भयंकर दर्द से चीखी होंगी, अनुमान नहीं लगा सकते। उनका सारा चेहरा गल गया। वे तड़प रही थीं लेकिन खुद को आशिक कहने वाला वो लड़का भाग गया। मोहिनी को अस्पताल ले जाया गया। उनकी जान तो बच गई लेकिन कई सर्जरी के बाद भी चेहरा मूल स्वरूप में नहीं आ सका। इसके बाद उन्होंने खुद को घर में कैद कर लिया। अपनी शक्ल देखने की हिम्मत उनमें नहीं थी। एक स्कार्फ से ढका चेहरा ही उनकी हकीक़त बनता जा रहा था। इकलौती लड़की थीं माता-पिता की। उन्हें गोद लिया गया था। आस-पास के लोग पेरेंट्स को सुनाने लगे कि एक जिंदा लाश को ढो रहे हैं।
ये सब सुनकर मोहिनी अंदर ही अंदर हर दिन थोड़ा और ख़त्म हो जाती थीं। वो वाकई जीना नहीं चाहती थीं। लेकिन साल भर बाद एक नई सुबह हुई और मोहिनी ने अपना स्कार्फ निकालकर फेंक दिया। ये मां-पिता का प्यार था या उनकी ख़ुद की इच्छा-शक्ति, वो उठीं और शीशे में खुद को निहारा। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया है कि उन्हें लगा कि ये चेहरा ही सिर्फ मोहिनी नहीं है। मोहिनी इसके अलावा भी बहुत कुछ है। उन्होंने सोच लिया कि अब इस चेहरे की सच्चाई को स्वीकार कर आगे बढ़ने का वक्त आ गया है। उन्होंने एक टेली-कम्युनिकेशन कंपनी में काम शुरू कर दिया। वो आगे बढ़ती गईं। एक दिन उनके पास अंजान नंबर से कॉल आई। दूसरी तरफ एक नौजवान की आवाज थी। उस लड़के ने एक सेकंड हैंड फोन लिया था, उस फोन में मोहिनी का नंबर सेव था। यहां से बातों का कारवां चला। तीन साल की दोस्ती में मोहिनी ने गौरव को सब बता दिया। गौरव को मोहिनी से प्रेम हो चला था। वो मोहिनी की जिंदादिली पर फिदा थे। एक दिन वो मोहिनी से मिलने गए। घुटनों पर बैठे और शादी के लिए प्रपोज कर दिया। फिर दोनों की शादी हो गई। एक प्यारा सा बच्चा भी है।
साभार- बशरा अंसारी की फेसुबक वॉल से
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