Ahoi Ashtami 2019: अहोई अष्टमी 2019- पूजा व्रत और कथा का विधान जानें


संतान की दीर्घायु और स्वस्थ के लिए अहोई व्रत की विधि और कथा


कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी को अहोई अष्टमी कहा जाता है। इस दिन अहोई माता की पूजा का विशेष विधान है। उत्तर भारत में इसे काफी उत्साह के साथ मनाया जाता है। अहोई माता के आशीष से संतान चिंरजीवी निरोग और तेजवान होती है। हर वर्ष ये व्रत पारम्परिक विधि-विधान के साथ करवा चौथ के चार दिन बाद और दीपावली से आठ दिन रखा जाता है। जिस विवाहित महिला को संतान रत्न की प्राप्ति ना हो रही हो, तो वे अहोई माता का व्रत करके अनुकंपा स्वरूप संतान प्राप्त कर सकती है। इस दिन गोवर्धन की तलहटी में स्थिति श्री राधाकुंड धाम में लाखों श्रद्धालु संतान प्राप्ति के लिए स्नान करते है। गुजरात और महाराष्ट्र की प्रचलित मान्यताओं के चलते वहाँ ये पर्व आश्विन मास में मनाया जाता है।


अहोई अष्टमी पूजा का शुभ मुहूर्त 2019

पूजा समय - सांय 17:45 से 19:02 तक ( 21 अक्तूबर 2019)
तारों के दिखने का समय - 18:10 बजे
चंद्रोदय - रात्रि 11:46 (21 अक्तूबर 2019)
अष्टमी तिथि प्रारम्भ - प्रातः 6:44 बजे  ( 21 अक्तूबर 2019)
अष्टमी तिथि समाप्त -  प्रातः 5:25 बजे ( 22 अक्तूबर 2019)



अहोई अष्टमी की कथा

एक महिला के सात बेटे थे। एक दिन घर की लिपाई पुताई के लिए मिट्टी लाने के लिए महिला वन में गई।  जहां पर मिट्टी खोदने के दौरान उससे एक बड़ी गलती हो गई और एक सेही बच्चे की उसके हाथों मौत हो गई। अपने बच्चे को मरा देख सेही ने महिला को श्राप दिया और जिसकी वजह कुछ सालों के भीतर ही उसके सभी बेटों की मृत्यु हो गई। महिला को महसूस हुआ कि ये सब सेही के दिए हुए श्राप की वज़ह से हो रहा है। अपने पुत्रों को जीवित करने के लिए महिला ने अहोई माता की पूजा की और छह दिनों तक अहोई माता का व्रत किया।  इसके बाद अहोई माता ने प्रसन्न होकर महिला के सातों मृत पुत्रों को फिर से जीवित कर दिया।


एक दूसरी कथा के अनुसार प्राचीन काल में दतिया नगर में चंद्रभान नाम का एक साहूकार रहता था। उसके कई बच्चे थे, लेकिन उसके बच्चे कम उम्र में ही अकाल मृत्यु को प्राप्त होने लगे। अपने बच्चों की अकाल मृत्यु से पति पत्नी दोनों ही व्यथित रहने लगते हैं। आखिर में उन दोनों की कोई सन्तान नहीं बचती है। व्यथित दम्पति धन दौलत का त्याग करके वनगमन करते हैं और बद्रिकाश्रम के समीप बने जल के कुंड के पास पहुँचते हैं और वहीं अपने प्राणों का त्याग करने के लिए अन्न जल का त्याग करके बैठ जाते हैं। इसी तरह छह दिन बीत जाते हैं तब सातवें दिन एक आकाशवाणी होती है कि, हे साहूकार तुम्हें यह दुख तुम्हारे पूर्व जन्म के पाप से मिल रह है अत: इन पापों से मुक्ति के लिए तुम्हें अहोई अष्टमी के दिन व्रत का पालन करके अहोई माता की पूजा अर्चना करना जिससे प्रसन्न हो अहोई मां तुम्हें दीर्घायु और यशस्वी संतान का वरदान देंगी। इस प्रकार दोनों पति पत्नी अहोई अष्टमी के दिन व्रत करते हैं और अपने पापों की क्षमा मांगते हैं। अहोई माँ प्रसन्न हो उन्हें संतान की दीर्घायु का वरदान देतीं हैं।

अहोई अष्टमी पूजन विधि

अहोई अष्टमी पूजा की तैयारियां सूर्यास्त से पहले पूरी करनी होती हैं।

  • सबसे पहले, दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाया जाता है। अहोई माता के चित्र में अष्टमी तिथि होने के कारण आठ कोने अथवा अष्ट कोष्टक होने आवश्यक है। सेही या उसके बच्चे को चित्र में दिखाये।

  • लकड़ी की चौकी पर माता अहोई के चित्र के बायीं तरफ पानी से भरा पवित्र कलश रखिये इसके बाद कलश पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर उस पर मौली बाँधिये।
  • अहोई माता को पूरी,हलवा तथा पुआ अर्पित करिये इसे वायन भी कहा जाता है, अनाज जैसे ज्वार अथवा कच्चा भोजन (सीधा) भी मां को पूजा में अर्पित किया जाना चाहिए।
  • परिवार की सबसे वरिष्ठ महिला परिवार की सभी महिलाओं को अहोई अष्ठमी व्रत कथा सुनाये। कथा सुनने के दौरान सभी महिलाओं को अनाज के सात दाने अपने हाथ में रखने चाहिए।


                  अहोई अष्टमी की आरती के साथ व्रत को पारायण की ओर ले जाये।

  •  पूजा पूरी होने के बाद महिलाएं अपने कुल की परंपरा के अनुसार पवित्र कलश में से चंद्रमा अथवा तारों को अर्घ्य देती हैं। तारों के दर्शन से और चंद्रोदय के बाद अहोई माता का व्रत पूर्णरूपेण संपन्न माना जाता है।




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