तेजी से भागती हुई
ज़िन्दगी में, हम अक्सर कई ऐसी चीज़े को अपना लेते है, जो इंसानी फितरत को बिगाड़
देती है। इस फेहरिस्त में सबसे ऊपर आता है गुस्सा या क्रोध। गौर देखे तो हम पाते
है कि, कुढ़न और तनाव इसे और भड़काते है। जब चीज़े आपके मनमाफिक ना हो, किसी से
आपकी असहमति (वैचारिक या कार्यकारी) हो या फिर गैर वाज़िब तरीके से आप पर बनाया
गया दबाव, गुस्से को पैदा करते है। एक जुमला काफी मशहूर है “गुस्सा
करना तो, मूर्खों का काम है” अक्सर ऐसे बहुत कम मौके देखे
गये है, जहाँ इसे वाज़िब ठहराया गया हो। राह चलते रोजाना कभी ना कभी ऐसे वाकये सामने
आते है। जहाँ लोग एक-दूसरे पर चीखते चिल्लाते नज़र आते है। दिल्ली में तो खासतौर
से गुस्से का एक नया चेहरा रोड़रेज के तौर पर दिखाई देता है। क्रोध का स्तर इस कदर
बढ़ जाता है, बात चीखने चिल्लाने से शुरू होती, मार-पिटाई से होते हुए कभी-कभी तो
हत्या पर आकर थमती है। गुस्सा करना मानवीय स्वभाव का हिस्सा है, इससे चाहकर भी छुटकारा
नहीं मिल सकता है। ये बात वियतनामी अच्छे से समझते है। हनोई की सड़क पर दो आदमी
लड़ रहे होते है। उनकी लड़ाई देखने के लिए तमाशबीनों का अच्छा खासा मजमा लग जाता
है। उनमें से एक लड़ते-लड़ते आपा खो बैठता है और हाथापाई करने पर उतारू हो जाता
है, सामने वाला डिफेंसिव मोड में आकर बचने की कोशिश करता है। ये देखकर भीड़ छंटने
लग जाती है, लोग हाथापाई पर उतारू हुए शख्स हो हारा हुआ मान लेते है।
अब हर कोई योगी या
सिद्ध पुरूष तो हो नहीं सकता कि इंसानी कमजोरियों पर फतह हासिल कर ले। ऐसे में कैसे
अपने गुस्से पर कन्ट्रोल करे बतौर आम आदमी, ये गलत धारणा है गुस्सा कन्ट्रोल किया
जा सकता है। अगर कोई इंसान अपने मूल स्वभाव के विपरीत जाकर इसे नियन्त्रित करने की
कोशिश करेगा तो, आने वाले वक्त में यहीं हाई ब्लड़ प्रेशर, डिप्रेशन की शक्ल
अख्तियार करके शरीर से फूटेगा। बेहतर होगा कि गुस्सा के प्रबन्धन को सीखा जाये।
अगर इसका ठीक से मैनेजमेंट किया जाये तो ये काफी फायदेमंद भी हो सकता है। जापानी
तो इसे एक अलग ही स्तर पर ले जाते है। वो अपने गुस्से को डाइवर्ट करने में यकीन
रखते है। मान लीजिए अगर उन्हें गुस्सा आता है, वो इसे जाहिर नहीं करेगें। बल्कि इन
हालातों में वो अपना गुस्सा पचिंग बैग पर या किक बॉक्सिंग करने में निकालते है।
ऑरिगेमी और हाइकू का भी सहारा लेते है, या फिर कोई दूसरी कवायद करने लगाते है। इस
तरह से गुस्से के नकारात्मक तत्वों को वे सृजनशील आयाम देते है। क्या आप जानते है
लोग अक्सर गुस्से में चीखने और चिल्लाने क्यों लग जाते है। इसके लिए पहले आपको
किसी प्रेमी जोड़े को देखना होगा, वो अक्सर शांत होकर बैठे रहते। एक दूसरे की
आँखों में आंखे डाले। क्योंकि उनके दिल एक दूसरे के बेहद करीब होते है। इश्क में आँखों
की जुंबा एक दूसरे से बहुत कुछ कह जाती है। दूसरी तरफ जब लोग गुस्से में होते है
तो, उनके दिलों के दरम्यां दूरी बहुत बढ़ जाती है, वो आपस में चिल्ला-चिल्लाकर
अपनी बात सामने वाले तक पहुँचाना चाहते है। जो कि कभी नहीं पहुँचती।
कभी-कभी तो इसकी
परिणति आत्मग्लानि पर आकर खत्म होती है। जैसे जुगनू के साथ हुआ। उसे बचपन से ही
कारों का बहुत शौक था। उसका सपना था, वो एक दिन मस्टैंग लेगा। ज़िन्दगी में काफी
जद्दोजहद झेलने के बाद, कई सालों की जमापूंजी और लोन से आखिर वो एक दिन मस्टैंग
खरीद ही लेता है। कार चाबी हाथ में लेते ही, उसे लगता है सारी दुनिया उसकी मुट्ठी
में है। खुशी को सेलीब्रेट करने के लिए अपनी पत्नी और बेटे के साथ लॉन्ग ड्राइव पर
निकलता है। देर रात बाहर ही डिनर कर वापस घर की ओर रूख करता है। सुबह उठकर खिड़की
से देखता है कि, उसका बेटा किसी नुकीली चीज़ से कार पर कुछ लिख रहा होता है। ये
देखते ही जुगनू का पारा सातवें आसमान पर जा पहुँचता है, चेहरा गुस्से से तमतमा
उठता है। वो आपा खो बैठता है, गोल्फ स्टिक उठाकर बेटे के पास पहुँचता है और पूरी
ताकत से उसे मारने लगता है। गुस्सा शांत होने तक मारता ही रहता है। मार से उस
बच्चे की हालत बहुत गंभीर हो जाती है। इन्टरनल ब्लीडिंग की वजह से, अधमरा हो जाता
है। अस्पताल के वेंटीलेटर पर ज़िन्दगी और मौत के बीच झूल रहा होता है। जैसे ही
जुगनू अस्पताल से वापस घर लौटता है तो उसकी नज़र मस्टैंग पर पड़ती है। उसके बेटे
ने गाड़ी पर खरोंचकर लिखा होता है, “आई लव यू पापा” अब जुगनू के हाथ में पछतावे के अलावा कुछ और नहीं था। क्षणिक उत्तेजना और
गुस्से ने उसे राक्षस बना दिया था। इन्हीं हालातों को इस्लाम में कहा गया है फलां
पर इब्बलीस (शैतान) सवार हो गय़ा है।
गुस्से की वजह से
मार्केट में Thiazide
diuretics और Escitalopram जैसी दवाइयां काफी
बिकती है, क्योंकि ये सिर्फ हमें ब्लड़ प्रेशर और तनाव ही देता है। एक युवा
मार्केटिंग एग्जीक्यूटिव काफी परेशान रहता। उसका बॉस दिन भर उसके सिर पर सवार रहता
था। डेड लाइन, प्रेजेन्टेशन, क्लाइंड डिलिंग, टारगेट अचीवमेंट, सेल परचेज जैसे
शब्दों के सामने उसकी ज़िन्दगी ने घुटने टेक दिये थे। बॉस की डांट से वो कुढ़ने
लगा। सेहत दिन पर दिन गिरने लगी, आँखों के नीचे काले स्याह गड्ढे उसकी उम्र को और बढ़ा
रहे थे। मार्केटिंग एग्जीक्यूटिव की कुढ़न और गुस्सा उसे अन्दर ही अन्दर खाये जा
रहा था। वो इनसे निकलना चाहता था। लेकिन परिवार की जिम्मेदारियों के चलते वो ऐसा
कर पाने में बेबस महसूस कर रहा था। खाने के साथ अब उसकी यारी दवाइयों की गोलियां
से भी हो गयी। एक वक्त ऐसा भी आया, जब दवाइयों ने असर करना बंद कर दिया। उसके
डॉक्टर ने उसे साइकैट्रिस्ट के पास भेजा। साइकैट्रिस्ट ने उसकी रोजमर्रा की
ज़िन्दगी, खान-पान और ऑफिस के बारे में पूछा। सब कुछ सुनने के बाद मनोचिकित्सक ने उसकी
सारी दवाइयां कूड़ेदान में फेंक दी। और नसीहत देते हुए कहा कि, अपने बॉस की बड़ी
सी तस्वीर फ्रेम करवाकर घर के मेन गेट पर टांग दो। ऑफिस जाने से पहले तस्वीर पर
चार जूते मारो और ऑफिस से आने के बाद फिर से चार जूते मारो। फॉर्मूला काम कर गया।
अब वो ऑफिस में खुश रहने लगा। बॉस की डांट पर उसे अब गुस्सा नहीं आता था। बल्कि मन
ही मन वो मुस्कराते हुए खुद से कहता था कि, इस बेचारे को ये नहीं पता कि मैं रोज
इसके मुँह पर चार जूते मारकर आता हूँ। दवाइयों से ज़्यादा इस तरकीब ने काम किया। सेहत
अब सुधरने लगी। अब रोज ऑफिस आने उसका मन करता था।
पल भर का गुस्सा बड़े
नुकसान दे सकता है। इससे घर के घर बर्बाद हो जाते है। आप उन लोगों को खो सकते है,
जो कई सालों से आप के प्रति हितैषी थे। सबसे बड़ा नुकसान तो ये है कि ये आपके लिए
नये दुश्मन पैदा कर देता है। इसलिए जरा संभलकर कहीं आप भी कुल्हाड़ी पर पांव तो
नहीं मार रहे है। ये आपको पहले संतोष देगा जो आगे चलकर पछतावे में बदल जायेगा।
- राम अजोर
एक्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर एवं सह संपादक ट्रेन्डी न्यूज़
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