इन नियम और विधानों को करने से माँ दुर्गा करती है कृपा
वर्ष में भर में दो बार
नवरात्रि आती है चैत्र नवरात्रे और शरद् नवरात्रे। इन दिनों में माँ दुर्गा और
उनके नौ रूपों का पूजन विशेष रूप से फलदायी होता है। माँ अंबा के नौ रूप विशेष
सिद्धियां देते है। प्रत्येक दिन के साथ उनके अलग-अलग रूपों के ध्यान एवं पूजन के
लिए शास्त्रों में खास़ तरह के विधानों का वर्णन है। घंट स्थापना के साथ माँ
शैलपुत्री की आराधना शुरू की जाती है। माँ बह्मचारिणी, माँ चन्द्रघंटा, माँ
कूष्माण्ड़ा, स्कंदमाता, माँ कात्ययानी, माँ कालरात्रि, माँ महागौरी, माँ
सिद्धिदात्री के पूजन के साथ नवरात्र पूजन का समापन होता है। इन दिनों दुर्गा
सहस्रनाम और दुर्गा सप्तशती का पाठ साधकों का मनवांछित फल प्रदान करता है। व्रत
उद्यापन के दिन कन्या पूजन का विशेष महात्मय होता है। माँ के रूपों के अनुसार नौ
बलिकाओं (तीन वर्ष से नौ वर्ष के बीच की) का अपने घर पर कंजक का भोज करायें। इस
दौरान खास बात का ये ध्यान रखें कि सभी बलिकाओं को घर में बुलाने के बाद स्वयं
उनके चरण पखारे। उन्हें भोजन करवाकर दक्षिणा आदि देकर उनसे आशीर्वाद ले। उन्हें
उपहार स्वरूप लाल चुनरियां अवश्य दे।
नवरात्र पूजन के शास्त्र सम्मत वैदिक विधान एवं विधि
- घर में पवित्र स्थान पर साफ मिट्टी से वेदी का निर्माण करे। वेदी में जौ और गेहूं को मिलाकर बोएं। वेदी पर या उसके समीप पृथ्वीमाता का आवाह्न कर पूजन करे। वहां स्वर्ण, चांदी, ताम्र या मिट्टी का कलश प्रतिष्ठित करें। तदोपरान्त कलश में आम के हरे पत्ते, दूर्वा, पंचागव्य डालकर उसके मुंह पर सूत्र बांधें। कलश स्थापना के उपरान्त गणेश पूजन करें। इसके बाद वेदी के किनारे माँ अंबा की किसी धातु, पाषाण, मिट्टी व चित्रमय मूर्ति को विधि-विधान से विराजमान करें।
- प्रत्येक दिन के साथ प्रत्येक देवी का आवाह्न उनके बीज़ मंत्रों से करे। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान मन और ह्दय में सात्विक भावों को बनाये रखे। माँ अंबा का श्रृंगार अत्यन्त प्रिय है। इसलिए पूजन सामग्री में सिंदूर, बिन्दी, काजल, मेहन्दी, कुंकुम और चूड़ियों को सम्मिलित करे। सार्मथ्यानुसार पूजन में इलायची, लौंग, काजू, पिस्ता, बादाम, गुलाब के फूल की पंखुड़ी, मोगरे का फूल, चारौली, किसमिस का भी प्रयोग किया जा सकता है।
- घर में शास्त्रोपरांगत आचार्य को बुलवाकर दुर्गा सप्तशती और दुर्गा सहस्रनाम का पाठ करवाना अतिउत्तम रहता है। यदि आपका संस्कृति उच्चारण अच्छा है तो आप स्वयं भी इस विधि को कर सकते है। उच्चारण का शुद्धता का वैदिक विधानों में विशेष महत्त्व रहता है। जरा सी अशुद्धि से मंत्रोच्चारण की प्रक्रिया निष्प्रभावी हो जाती है।
- प्रतिदिन देवी माँ का पूजन और स्मरण करें तथा जौ और गेंहू वाले पात्र में जल का हल्का छिड़काव करें। छिड़काव इतना हो कि जौ अंकुरित हो सके। अंकुरित जौ और गेंहू शुभ माने जाते है। । यदि इनमे से किसी अंकुर का रंग श्वेतवर्णी हो तो उसे अतिउत्तम माना जाता है। इस मंत्र का जाप करते हुए व्रत पारायण करे और जौ गेंहू वाला पात्र मंदिर में निर्धारित स्थान पर रख आवें।
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे
सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी
नारायणि नमोऽस्तुते।।
ॐ जयन्ती मंगला काली
भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री
स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।
या देवी सर्वभूतेषु
शक्तिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण
संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु
तुष्टिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु
मातृरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण
संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु
बुद्धिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु शांतिरूपेण
संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नमः।।
'ॐ ऐं
ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै'
0 Comments