दशहरा
पूजन की इन चमत्कारी विधियों को पूरा करे, होगा शत्रुनाश
शरदीय नवरात्रों का
पारायण दशहरे के त्यौहार के साथ होता है। ये नौ दिन माँ अंबा के आराधना के लिए
पूर्णरूपेण समर्पित होते है। लेकिन विजयदशमी के दिन माँ के ध्यान और पूजन से शत्रुओं
का नाश होता है। माँ ने स्वयं भगवान राम को विजय श्री का आशीर्वाद दिया था। ये आशीर्वाद
इसी दिन फलीभूत हुआ था। विजयादशमी के दिन रात के 8 बजकर 12 मिनट तक सर्वकार्य सिद्धि करने वाला रवि योग रहेगा। इस दिन श्रवण नक्षत्र का
भी योग है। इस कारण ये तिथि और भी शुभ हो जाती है।
विजयदशमी का शुभ मुहूर्त
विजय मुहूर्त: यदि आपको
किसी भी काम में विजय प्राप्त करनी है तो, उक्त काम का आरम्भ 8 अक्टूबर दोपहर 01
बजकर 42 मिनट से लेकर 02 बजकर 29 मिनट के बीच करे।
अपराह्न पूजा समय- 13:17
से 15:36
दशमी तिथि आरंभ- दोपहर
12:39 (7 अक्तूबर)
दशमी तिथि समाप्त- 14:50
मिनट (8 अक्तूबर)
पूजन के लिए निर्धारित
समय के दौरान विद्या प्राप्ति के लिए, इस मंत्र का जाप करे
आश्विनस्य सिते पक्षे
दशम्यां तारकोदये।
स कालो विजयो ज्ञेयः
सर्वकार्यार्थसिद्धये॥
पूजन के लिए निर्धारित
समय के दौरान यशोबल में वृद्धि और शत्रुनाश के लिए, इस मंत्र का जाप करे
मम क्षेमारोग्यादिसिद्ध्यर्थं
यात्रायां विजयसिद्ध्यर्थं
गणपतिमातृकामार्गदेवतापराजिताशमीपूजनानि
करिष्ये।
पूजन विधिः-
दशहरा के दिन सबसे पहले
सुबह अपने सभी काम करके एवं स्नान आदि करके स्वच्छ कपड़े पहन लें। उसके बाद गाय के
गोबर से दस गोले यानि गोबर के कंडे बनाए। नवरात्रि के पहले दिन जौ बीजे जाते हैं, कंडों पर
उन्हें लगाएं। कंडों पर दही लगाएं। इसके बाद धूप और दीप जलाकर धूप-अगरबत्ती जलाकर माँ
आदि भगवती का ध्यान करे। घरों में यदि किसी तरह के अस्त्र-शस्त्र है तो उन्हें साफ
करके उनका पूजन करे। रक्त चंदन से अस्त्रों-शस्त्रों का अभिषेक करे। इस दिन भगवान
राम की झाकियों पर जौ चढ़ाने की प्रथा बहुत ही पुरानी है। कई स्थानों पर कान के ऊपर
जौ रखने का रिवाज भी होता है। यदि संभव हो सके तो नीलकंठ पक्षी के दर्शन
करके आदियोगी (भगवान शंकर) के नीलकंठ स्वरूप का ध्यान करे। सांयः काल धूप-दीप जलाकर, अक्षत से रावण की पूजा करे।
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