महारास, गोपियां, वृन्दावन और 16 कलाओं से परिपूर्ण
चन्द्रमा की सौम्य रश्मियां। इन सबका सीधा संबंध है शरद् पूर्णिमा से जिस कोजागर
पूर्णिमा/कोजागरी के नाम से भी जाना जाता है। इन दिन समस्त ब्रजमंडल में महारास की
धुन का स्पंदन अत्याधिक होता है। शरद् पूर्णिमा के दिन विधि सम्मत तरीके से किये
गये धार्मिक विधान अमोघ फलदायी होते है।
सनातनी पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन चन्द्रमा की रोशनी से पृथ्वी पर अमृत
वर्षा होती है। कोजागर पूर्णिमा के दिन मध्य रात्रि 12 बजे के बाद चन्द्रमा की
रोशनी में चांदी के बर्तन में खीर रखने का रिव़ाज होता है। जिसे बाद में परिवार के
सभी सदस्यों के बीच प्रसाद के रूप में बांटकर खाया जाता है। इस वर्ष शरद् पूर्णिमा
का पावन मुहूर्त 13 अक्टूबर मध्यरात्रि 12 बजकर 36
मिनट पर लग रहा है, और समापन 14 अक्टूबर दोपहर 02 बजकर 38 मिनट पर हो रहा है। शरद्
पूर्णिमा के इस पावन मुहूर्त पर श्री गिरिराज और श्री वृन्दावन धाम की रात्रि
परिक्रमा का विशेष महात्मय होता है। वैष्णव भक्त भागवद्कृपा पाने के लिए विशेषतौर
पर रात्रि परिक्रमा करते है।
शरद् पूर्णिमा से
जुड़ी जन मान्यतायें और वैदिक विधान
- श्रीमद्भगवद्गीता में उदृधत् है कि कोजागर पूर्णिमा की रात में भगवान गोपेश्वर श्री कृष्ण बांसुरी की ऐसी तान छेड़ी थी कि, सारी गोपियां उनकी ओर खिंचती चली आईं, शरद पूर्णिमा की इस रात्रि को 'महारास' या 'रास पूर्णिमा' के नाम से भी जाना जाता है। ब्रजवासियों में ऐसी मान्यता है कि, इस रात्रि में हर गोपी के लिए भगवान कृष्ण ने एक-एक कृष्ण बनाए और पूरी रात यही कृष्ण और गोपियां दैवीय नृत्य करते रहे, जिसे महारास कहा गया। पुराणों में कहीं कहीं ये आख्यान सामने आता है कि कृष्ण ने अपनी शक्ति से शरद पूर्णिमा की रात को भगवान ब्रह्मा की एक रात जितना लंबा कर दिया। खास बात ये है कि ब्रह्मा की एक रात मनुष्यों के करोड़ों रातों के बराबर होती है।
- शरद् पूर्णिमा का दूसरा नाम कोजागर पूर्णिमा। कोजागर का मतलब होता है को-जागर अर्थात् “कौन जाग रहा है” मान्यताओं के अनुसार अर्धरात्रि में माँ लक्ष्मी आकाश में स्वछंद विचरण करती है। और वो देखती है कि कौन जाग रहा है। और उन पर अपनी विशेष अनुकंपा करती है।
- मां लक्ष्मी को ताम्बुल (सुपारी) अत्यन्त प्रिय है। इस दिन पूजन सामग्री में सुपारी का इस्तेमाल अवश्य करें। पूजनोपरान्त सुपारी को लाल धागे में लपेटकर उसको अक्षत, कुमकुम, पुष्प आदि से पूजन और अभिमन्त्रित करके उसे तिजोरी में रखने से धन की कभी कमी नहीं होगी। रात में छत पर खीर को चांदी के पात्र में रखकर, उसे बेहद महीन सूती के झीने से कपड़े से ढ़ंक दे। प्रातः काल इसे बांट दे।
- अपने प्रियजनों के साथ खुले में (खासतौर से छत पर खुले में बैठकर) रात्रि जागरण करे। मांगलिक गीत गाये। साथ ही
'ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद
प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः' पुत्रपौत्रं धनं
धान्यं हस्त्यश्वादिगवेरथम् प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु मे।
मंत्र का जाप 1008 करते हुए। माँ लक्ष्मी की प्रतिमा को नेवैध
भोग लगाये। श्रीयन्त्र को रात्रि जागरण के दौरान प्रियजनों के बीचोंबीच स्थापित
करे।
- शरद् पूर्णिमा के कई वैज्ञानिक पक्ष भी है, इस पूर्णिमा के बाद शरद् ऋतु का आगमन होता है। आयुर्वेदाचार्य मानते है कि इस रात सभी औषधियों में एक विशेष प्रकार का स्पंदन होता है, जिससे उनमें औषधिय सान्द्रता (Medicinal concentration) में इज़ाफा हो जाता है। जब खीर को चन्द्र रश्मियों का स्पर्श मिलता है तो लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व के इस मेल के कारण खीर में शक्ति को शोषण अत्याधिक हो जाता है। चांदी के पात्र में बनी खीर के सेवन करने से शरीर की विषाणुओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है।
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