इस दीवाली ऐसे करे माँ लक्ष्मी का पूजन, धन-सम्पदा और समृद्धि आयेगी आपके
द्वार
कार्तिक माह की कृष्ण अमावस्या दीपावली के नाम के
विख्यात है। सनातन परम्परा में इस दिन माँ लक्ष्मी के पूजन का विधान है। इस दिन के
साथ कई कहानियां जुड़ी है जैसे इस दिन भगवान राम चौदह वर्षों का वनवास काटकर
अयोध्या लौटे थे। पूर्णावतार श्री कृष्ण ने इसी दिन नरकासुर का वध किया था। इस दिन
छठीं पातशाही श्री गुरू हरगोविंद साहिब जी को कारावास से मुक्ति मिली थी। 24 वें
तीर्थंकर भगवान महावीर को इसी दिन कैवल्य की प्राप्ति हुई थी। कई समुदायों से
जुड़े होने के कारण भारत में ये त्यौहार काफी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। माँ
लक्ष्मी धन, सम्पदा, शान्ति और समृद्धि की देवी है। इनकी अनुकंपा से साधक की दुःख, द्ररिदता, व्याधि का नाश होता है। ऐसे में दीपावली
पूजन की महत्ता अत्यन्त बढ़ जाती है।
माँ लक्ष्मी के पूजन के लिए आवश्यक सामग्रीः-
माँ लक्ष्मी, माँ सरस्वती व गणेश जी का चित्र या विग्रह, तांबें पर जड़ित श्रीयन्त्र, रोली, कुमकुम, अश्रत, पान
के पत्ते, सुपारी, लौंग, इलायची, धूपबत्ती, कपूर, अगरबत्तियां, मिट्टी या तांबे के दीये, रुई, कलावा (मौलि), श्रीफल, शहद, दही, गंगाजल, गुड़, फल, फूल, जौ, गेहूँ, दूब, चंदन, सिंदूर, घी, पंचामृत, दूध, मेवे, खील, बताशे, गंगाजल, यज्ञोपवीत (जनेऊ), सफेद वस्त्र, इत्र, चौकी, कलश, सिंघाड़ों की माला, शंख, आसन, थाली, चांदी का
सिक्का, देवताओं के प्रसाद हेतु मिष्ठान्न
पूजन विधिः-
पूजा करने से पहले एक चौकी पर सफेद वस्त्र बिछा कर
उस पर मां लक्ष्मी, माँ
सरस्वती व गणेश जी का चित्र या विग्रह को विराजमान करें। फिर हाथ में पूजा के
जलपात्र से थोड़ा-सा जल लेकर उसे प्रतिमा या चित्र के ऊपर निम्न मंत्र पढ़ते हुए
छिड़कें। फिर इस मंत्र का उच्चारण करे
ऊँ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा। य:
स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: वाह्याभंतर: शुचि:।।
ठीक इसी तरह खुद को और चौकी पर जल छिड़ककर दुबारा
इसी मंत्र का जाप करे। इसके बाद धरती मैय्या को प्रणाम करके इन मंत्रों को बोलें
पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग ऋषिः सुतलं छन्दः कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥
ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥ पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नमः
धरती मैय्या माफी मांगते हुए अपने आसन पर बैठ
जाये। इसके बाद "ॐ
केशवाय नमः ॐ नारायणाय नमः, ॐ माधवाय नमः" कहते हुए गंगाजल का
आचमन करें।
माँ लक्ष्मी का ध्यान करते हुए, इन मंत्रों को जाप करेः-
या सा पद्मासनस्था विपुल-कटि-तटी
पद्म-पत्रायताक्षी, गम्भीरार्तव-नाभि:
स्तन-भर-नमिता शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।
या लक्ष्मीर्दिव्य-रूपैर्मणि-गण-खचितैः स्वापिता
हेम-कुम्भैः, सा
नित्यं पद्म-हस्ता मम वसतु गृहे सर्व-मांगल्य-युक्ता ।।
इसके बाद विष्णु भगवान और कुबेर देव का नमन करे।।
मां लक्ष्मी, माँ सरस्वती को गंध पुष्प अर्पित करे। गणेश जी
को दूब चढ़ायें। इन तीनों देवों को वस्त्र, मिष्ठान, पंचगव्य, इत्र, फल आदि समर्पित
करे।
ॐ हिरण्यवर्णान हरिणीं सुवर्ण रजत स्त्रजाम
चंद्रा हिरण्यमयी लक्ष्मी जातवेदो म आ वहः।।
इस मंत्र के साथ सपरिवार लक्ष्मी-सूक्त का पाठ
करे। अन्त में आरती के साथ पूजन का पारायण करे। अन्त में माँ लक्ष्मी से
क्षमायाचना करे और कहे यदि मुझसे एक पूजन में जाने अन्जाने में कोई त्रुटि रह गयी
हो तो मुझे क्षमा करे।
इसके बाद प्रजवल्लित दीये एक एक करके दसों दिशाओं
के द्वारपालों, यम,
पितृदेवता, ग्रामदेवता, कुलदेवता
के स्थानों पर रखे।
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