IFFI Goa: IFFI 2019 एकदम वाहियात फिल्म फेस्टिवल है-एलिसन रिचर्ड


सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा हर साल गोवा में इन्टरनेशनल फिल्म फेस्टिवल का आयोजन किया जाता है। मंत्रालय के तहत आने वाली फिल्म डिजीवन इसे ऑर्गनाइज़ करती है। पूरे साल भर में फिल्म डिजीवन द्वारा किया जाने वाला ये एकमात्र बड़ा आयोजन है। इस पूरे फिल्म फेस्टिवल में मैनेजमेंट का काम भारतीय सूचना सेवा (IIS) से जुड़े अधिकारी करते है। इस साल का ये आयोजन और भी ज़्यादा खास़ है क्योंकि ये फिल्म फेस्टिवल का 50 वां आयोजन है। पूरे फिल्म फेस्टिवल के दौरान देखने को मिल रहा है कि मैनेजमेंट के नाम पर कुछ भी नहीं है। अधिकारियों को भी समझ में नहीं आ रहा चीज़ें कैसी संभाली जाये। 


इसी मसले को लेकर कनाडियन फिल्म मेकर एलिसन रिचर्ड ने डेक्कन हेराल्ड के साथ अपने कड़वे अनुभव साझा किये। एलिसन इस आयोजन में बतौर मेहमान हिस्सा ले रही है। उनके मुताबिक उन्होनें अपने तीस सालों के करियर में ऐसा बेकार फिल्म फेस्टिवल आज तक नहीं देखा। 


वो बताती है कि-यहाँ पर कई समस्यायें है। क्लॉक रूम अन्दर है, अगर मेरे बैग में कुछ ऐसा है जिसको ले जाने की मनाही है तो, ऐसे में मैं क्या करूँ क्या वापस घर चली जाऊँ। ये बेहद ही वाहियात है। मैं अपने होटल से तकरीबन 1.3 किलोमीटर का सफर करके यहाँ तक पहुँचती हूँ, लेकिन यहाँ पार्किंग की कोई जगह नहीं मिलती है। पार्किंग में कई हज़ार स्कूटर और साइकिलें खड़ी रहती है लेकिन मैं अपनी साइकिल कहीं भी यूँ ही नहीं लगा सकती। मुझे यहाँ आकर ऐसा लग रहा है कि जैसे मैं मेहमान ना होकर कोई क्रिमिनल हूँ। 30 साल से फिल्म मेकिंग में हूँ और 25 सालों से फिल्म फेस्टिवलस् में हिस्सा ले रही हूँ। लेकिन ऐसा बेकार फिल्म फेस्टिवल कहीं नहीं देखा। लगता है ये फेस्टिवल फिल्म मेकर्स के लिए ना होकर आम जनता के लिए है। 


अपने हालातों पर हंसते हुए आगे वो कहती है कि, मेरा बैज़ ढंग से काम नहीं कर रहा है। इसलिए मैं फेस्टिवल की अलग-अलग लोकेशन पर जा नहीं पा रही हूँ। ये और कुछ नहीं कॉमेडी एरर है। जब हैल्पलाइन पर मदद के लिए कॉल करती हूं तो वहाँ पर मेरी बात समझने वाला कोई नहीं मिलता है। ऐसे में मामला बीच में ही अटककर रह गया है। 


अगर आप लोग विदेशी डेलीगेट्स को नहीं समझ सकते है तो उन्हें मत बुलाइये। अगर इन्टरनेशनल फिल्म मेकर्स को बुलाना नहीं चाहते है तो इसे अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल मत कहिये। ये गोवा है इसलिए फिल्म फेस्टिवल पब्लिक इवेन्ट बनकर रह गया है। 


जिस तरीके से पिछले फिल्म फेस्टिवल किया गया था, उसे देखते हुए कई रेगुलर डेलीगेट्स इस फिल्म फेस्टिवल की आलोचना कर रहे है। फिल्म फेस्टिवल में ऑनलाइन टिकट बुकिंग सुविधा भी कोई कारगर नहीं है। कई ऐसे भी लोग है जिन्होनें वेबसाइट से टॉक शो के लिए टिकटें बुक की थी लेकिन अभी कई सीटें खाली है। कई लोग जो वहाँ बिना टिकट पहुँचे थे उन्हें गार्ड्स ने भगा दिया। कई लोग जो IFFI एक्युक्यूटिव बनकर घूम रहे है, उन्हें बात करने का सलीका तक नहीं है। 


डेक्कन हेराल्ड से बात करते हुए एक अन्य डेलीगेट ने IFFI एक्युक्यूटिव को ठग तक कह दिया।

फिल्म फेस्टिवल में ईवेन्ट मैनेजमेंट की बदहाली से जुड़ी कई ओर खामियां भी सामने आयी। सदी के महानायक को IFFI प्रबन्धन की ओर से जो ड्राइवर और गाड़ी उपलब्ध करवायी गयी उसमें काफी देरी हो गयी। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से जुड़ी दूसरी यूनिट जो वहाँ काम करने पहुँची थी। उन्हें भी एन्ट्री पास मुहैया नहीं करवाये गये। जिसकी वज़ह से वो रेड कार्पेट इवेन्ट में हिस्सा नहीं ले सके।

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