Worse conditions for youth in the country: हर घंटे एक युवा बेरोजगार आत्महत्या करने के लिए मज़बूर



युवाओं की मौजूदा हालत पर जो आंकड़े निकलकर सामने आ रहे है, वो बेहद चौंकने वाले है। ये आंकड़े तो वह है जिन्हें दर्ज किया गया है। जिन आंकड़ों की सरकारी फाइलों में जगह नहीं मिली वो तो और भी चिंता का सब़ब है। ये शर्मसार होने वाली बात है कि हमारे देश में युवाओं को दोयम दर्जे के नागरिक तौर पर देखा जाता है। हमारे देश में 65 फीसदी आबादी युवाओं की है, जिन्हें उनके खस्ताहाल पर छोड़ दिया गया है। 

फिलहाल भारतीय युवाओं का ज़्यादा से ज़्यादा इस्तेमाल सियासी मुनाफा हासिल करने के लिए किया जाता है। जिस तरह से असमानतायें बढ़ रही है, युवाओं के कौशल विकास पर कुछ नहीं किया जा रहा है। रोजगार के नाम पर युवाओं को मुफ़्त डेटा पैक देकर उलझाया जा रहा है। अगर इसी तरह की हालात बने रहे तो ये समस्या एटम बम की तरह विस्फोटक बन जायेगी। जिसमें युवा या तो खुद को खत्म कर लेगा या फिर दूसरों को। 

वक़्त आ गया है युवाओं को जागना चाहिए। बनावटी दुनिया के सम्मोहन से बाहर निकलकर, रेड डिजिटलाइजेशन के नाम पर कौशल विकास की फर्जी कवायदों को धत्ता बताकर, अब युवाओं को अपने वजूद पर सवालिया निशाना लगाना होगा। व्यवस्था से अपने हक़ के लिए लड़ना होगा। आत्महत्या किसी भी समस्या का विकल्प नहीं हो सकता है। फिलहाल युवाओं को प्रगतिशील और बदलाव लाने वाली सोच की जरूरत है। ये उन लोगों के लिए करारा तमाचा होगा, जो युवा सशक्तिकरण के नाम पर असमानताओं का ज़हर फैला रहे है।


- कैप्टन जी.एस. राठी
सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता

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