अफ़जल गुरू का नाम एक बार फिर से मीडिया में छाया हुआ है। कारण है हिज्बुल मुजाहिद्दीन के आतंकवादियों के साथ डीएसपी देवेन्द्र सिंह की गिरफ्तारी। गौरतलब है कि ये वहीं देवेन्द्र सिंह है, जिसका नाम अफ़जल बार-बार हिरासत में लिया करता था। अफज़ल के मुताबिक देवेन्द्र सिंह ही वो शख्स है जिसने उसे फंसाया है। हाल ही में जम्मू कश्मीर के पुलिस अधीक्षक देवेन्द्र सिंह में हिज्बुल दहशतगर्दों के साथ पकड़े गये थे, उनसे पास से तीन AK-47 और हैंड ग्रेनेडों की बरामदगी हुई है। देवेन्द्र सिंह को आतंकियों के खिल़ाफ अभियान चलाने के लिए राष्ट्रपति मेडल से नव़ाजा गया है। खतरों के बात ये उभर रही है कि पुलिस में इतने बड़े ओहदों पर बैठे अधिकारी की आतंकियों से साठ-गांठ है, सीधा मतलब है कि प्रशासन-व्यवस्था के ऊपरी हिस्से में कई छेद है जिनका फायदा सीमा पार बैठे दहशतगर्द उठा रहे है।
इस बीच कारवां पत्रिका 2 फऱवरी 2013 में छपा अफज़ल गुरू का इन्टरव्यूह सामने आ रहा है। जिसमें उसने डीएसपी देवेन्द्र सिंह के नाम का हवाला लेते हुए कहा था कि- उन्होनें ने ही उसे फंसाया है। अफजल गुरू और विनोद के.जॉस के बीच हुई बातचीत अब सच होती दिख रही है।
उठे कई बड़े सवाल
देवेन्द्र सिंह की आंतकी कनेक्शन में गिरफ्तारी कई बड़े सवाल खड़े करती है। सुरक्षा एजेंसियों, जाँच एजेंसियों, सेना, एसटीएफ, दिल्ली पुलिस और जम्मू कश्मीर पुलिस ने तमगों के लिए अफज़ल को फंसाया ? पूछताछ के दौरान जब अफज़ल गुरू ने डीएसपी देवेन्द्र सिंह का नाम लिया तो जांच के दायरे में उन्हें क्यों नहीं लिया गया ? क्या पूरी जांच प्रक्रिया ही पूर्वनिर्धारित और पूर्वाग्रहों से ग्रस्त थी ? अगर अफज़ल गुरू को फंसाया गया है तो वास्तविक अपराधी कौन है?
अफजल गुरू और विनोद के.जॉस के बीच बातचीत के अंशः
"एसटीएफ कैंप में रहने के बाद आपको पता होता है कि या तो आपको चुपचाप एसटीएफ का कहना मानना होगा नहीं तो आप या आपके परिवार वालों को सताया जाएगा। ऐसे में जब डीएसपी दविन्दर सिंह ने मुझे एक छोटा सा काम करने को कहा तो मैं न कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। जी हां, उन्होंने इसे “एक छोटा सा काम” ही कहा था। दविन्दर ने मुझे एक आदमी को दिल्ली लेकर जाने और उसके लिए किराए का मकान ढूंढने को कहा था। मैं उस आदमी से पहली बार मिला था। क्योंकि उसे कश्मीरी नहीं आती थी इसलिए मैं कह सकता हूं कि वह बाहरी आदमी था। उसने अपना नाम मोहम्मद बताया. (पुलिस का कहना है कि जिन 5 लोगों ने संसद में हमला किया उनका लीडर मोहम्मद था। उस हमले में सुरक्षा बलों ने इन पांचों को मार दिया था।)
जब हम दोनों दिल्ली में थे तब दविन्दर हम दोनों को बार बार फोन करते थे। मैंने इस बात पर भी गौर किया कि मोहम्मद दिल्ली के कई लोगों से मिलने जाता था। कार खरीदने के बाद उसने मुझसे कहा कि उसे मेरी जरूरत नहीं है और मैं घर जा सकता हूं। जाते वक्त उसने मुझे तोहफे में 35 हजार रुपए दिए। मैं ईद के लिए कश्मीर आ गया।
मैं श्रीनगर बस अड्डे से सोपोर के लिए निकलने ही वाला था कि मुझे गिरफ्तार कर लिया गया और परिमपोरा पुलिस स्टेशन लाया गया। उन लोगों ने मेरा टॉर्चर किया और फिर एसटीएफ के मुख्यालय ले गए और वहां से दिल्ली लेकर आए।
दिल्ली पुलिस के विशेष सेल के टॉर्चर चैंबर में मैंने मोहम्मद के बारे में जो कुछ भी मुझे पता था, बता दिया। लेकिन उन लोगों ने जोर दिया कि मैं कबूल कर लूं संसद में हमले में मेरा कजन शौकत, बीवी नवजोत, एसएआर गिलानी और मैं शामिल थे। मैंने इसका विरोध किया लेकिन जब उन लोगों ने मुझे बताया कि मेरा परिवार उन लोगों के कब्जे में है और उनको मार दिया जाएगा तो मुझे ऐसा करना पड़ा। मुझसे सादे कागज में दस्तखत कराया गया और मीडिया के सामने क्या कहना है बताया गया। जब एक पत्रकार ने मुझसे एसएआर गिलानी के बारे में सवाल किया तो मैंने कहा कि वह बेकसूर हैं। इस पर एसीपी राजबीर सिंह ने पूरे मीडिया के सामने मुझे फटकार लगाई क्योंकि मैं उनके सिखाए से अलग बोल रहा था। जब मैं उनकी सीख से हट कर बोल गया तो वे लोग निराश हो गए और पत्रकारों से मिन्नतें करने लगे कि गिलानी की बेगुनाही वाली मेरी बात को न छापा जाए।
राजबीर सिंह ने दूसरे दिन मेरी बीवी से बात कराई। बात कराने के बाद उसने मुझसे कहा कि अगर मैं अपने लोगों को जिंदा देखना चाहता हूं तो उनका सहयोग करना होगा। अपने परिवार की जिंदगी की खातिर गुनाह कबूल करने के सिवा मेरे पास और कोई चारा नहीं था। स्पेशल सेल के अफसरों ने मुझसे कहा कि वे लोग मेरा केस इतना कमजोर बना देंगे कि मैं कुछ दिनों में ही छूट जाऊंगा। वे लोग मुझे लेकर अलग-अलग जगह गए और वे बाजार दिखाए जहां से मोहम्मद ने चीजें खरीदी थीं। इस तरह उन लोगों ने मामले के सबूत पैदा किए।
पुलिस ने संसद में हमले के मास्टरमांइड को न पकड़ पाने की अपनी नाकामयाबी को छिपाने के लिए मुझे बलि का बकरा बनाया। पुलिस ने लोगों को बेवकूफ बनाया। आज तक लोगों को नहीं पता कि संसद में हमले की साजिश किसने रची। मुझे कश्मीर के विशेष कार्रवाई बल ने इस केस से जोड़ा और दिल्ली पुलिस के विशेष सेल ने फंसाया।
मीडिया ने मेरे “इकरार” को बार बार प्रसारित किया। पुलिस अफसरों को ईनाम मिला और मुझे मौत"
साभारः- कारवां पत्रिका के कार्यकारी संपादक विनोद के.जॉस
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