Deepika trolled for supporting Aashi Ghosh: सियासत के चलते छपाक का विरोध ?



ये तो होना ही था। दीपिका जेएनयू चली गई तो उसके पाकिस्तान कनेक्शन, मुस्लिम कनेक्शन, कांग्रेस कनेक्शन, कम्युनिस्ट कनेक्शन खोजे ही जाने थे। ना मिले तो जोड़े जाने थे। उसी में एक इकतरफा वेबसाइट को ऐसा चारा मिल गया जिसे भक्त चर सकें। उसने उड़ा दिया कि लक्ष्मी पर एसिड फेंकनेवाला असल में नदीम खान था, जो कि था (नाम देखकर आप दिलचस्पी लेने की वजह समझ ही सकते हैं)। लिखा गया कि नदीम का नाम बदलकर फिल्म में राजेश कर दिया गया है। ज़ाहिर है, ये बात उड़ाई गई ताकि भक्तों को हमला करने के लिए तीर दिया जा सके कि देखो दीपिका कैसी “सिकुलर” है कि हमलावर मुसलमान है तो उसका नाम हिंदू रखवा दिया। 



कमाल देखिए कि ये आलम तब है जब ख़बर उड़ानेवालों ने फिल्म भी नहीं देखी। उन्हें इसकी ज़रूरत भी नहीं है। उनका काम बन गया है। उन्हें फर्क नहीं पड़ता कि फिल्म रिलीज़ होने के बाद जब सारे हिंदुस्तान को पता चलेगा कि असल में नदीम खान का नाम बदला तो गया पर उसका नाम राजेश नहीं बशीर खान उर्फ बब्बू रखा गया तो ये माफी भी नहीं मांगेंगे। उनसे माफी की मांग भक्त समुदाय करेगा भी नहीं। उसे आदत है अफवाह उड़ाने, उसके फुस्स होने और फिर से उड़ाने की। वैसे फिल्म में नाम सबके बदले गए हैं। लक्ष्मी खुद ही मालती है। राजेश मालती का ब्वॉयफ्रेंड है। उसका भी नाम बदला ही गया है। 


इस सबको नज़रअंदाज़ करके भक्त और भक्त कबीले के सामंत उस फिल्म का बहिष्कार करने का आह्वान कर रहे हैं जो तेजाबी हमलों से जूझने की कहानी है। मैं तो कहूंगा कि ऐसी कहानी पर अगर कोई भक्त भी फिल्म बनाए तो भी उसे ज़रूर देखें। राजनीतिक विचार का इस कहानी से लेनादेना होना ही नहीं चाहिए। तेजाब फेंकनेवाला और तेजाब से जलनेवाला कोई भी हो सकता है। दीपिका का तो इस फिल्म के फ्लॉप होने से कुछ ना बिगड़ेगा लेकिन इंसानी हौसले की एक कहानी ज़रूर कम दर्शक पाएगी जो वो वैसे भी पाती। अलबत्ता भक्त समुदाय के चाहने से कुछ ना होगा क्योंकि समूह में मोदी जी की फिल्म देखने के आह्वान के बावजूद विवेक ओबेरॉय पिट गए थे।

साभार-नितिन ठाकुर की फेसबुक वॉल से

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