स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने देश के मौजूदा हालातों के मद्देनज़र रिसर्च करवायी। जिससे निकले निष्कर्ष काफी निराशा पैदा करने वाले है। रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान बढ़ती मंहगाई दर के बीच रोजगार के अवसरों में भारी कमी दर्ज की जायेगी। रिसर्च में जिन नौकरियों के कम होने की बात कही गयी है, वो पे-रोल आधारित नौकरियां है ना कि संविदा और कैजुअल बेसिस वाली। साथ ही रिपोर्ट ये भी बताती है कि वित्तवर्ष 2019-20 और 2018-19 के तुलनात्मक अध्ययन दिखाते है कि पे-रोल आधारित रोजगार के अवसरों में 20 फीसदी की सीधी गिरावट दर्ज की गयी है।
रिसर्च में जिन आंकडों का हवाला दिया गया है। उनमें ईपीएफओ का डेटा भी शामिल है। गौरतलब है कि रिसर्च में इसे बतौर प्राइमरी डेटा इस्तेमाल किया गया है सांख्यिकी और रोजगार संबंधी आंकड़ों के जानकार बताते है कि ईपीएफओ उन लोगों को भी कार्यरत बताता है, जिन्होनें हाल-फिलहाल में ही नौकरियां छोड़ी है। इस रिपोर्ट के पेश होने के बाद आर्थिक मामलों के जानकार ये मान रहे है कि, ये रिसर्च वास्तविक तस्वीर को नहीं दिखा रही है।
साथ ही इस रिसर्च की तुलना इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट से भी की जा रही है, इकोनॉमिक टाइम्स ने भी ईपीएफओ के डेटा का इस्तेमाल करते हुए नतीज़ा निकला था कि, चालू वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान 106.2 लाख करोड़ ईपीएफओ एनरॉलमेंट हो सकते है। वहीं दूसरी ओर एसबीआई का शोध बताता है कि, ये संख्या 73.9 लाख हो सकती है। गौरतलब है कि केन्द्र सरकार ने साल 2017 के दौरान ईएसआईसी, एनपीएस और ईपीएफओ के आंकड़ो को आधार बनाते हुए हर महीने पे-रोल डेटा पब्लिश करना शुरू किया था।
दूसरी और कॉन्ट्रेक्टचुअल नौकरियां में भी भारी गिरावट दर्ज की गयी है। वर्क फोर्स उपलब्ध कराने वाले राज्य जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, ओडिशा के श्रमिकों द्वारा गृहनगर भेजे गये मौद्रिक प्रवाह में भी भारी कमी देखी जा रही है। ईपीएफओ में उन लोगों को शामिल किया जाता है, जो न्यूनतम वेतन के तहत काम करते है साथ ही जिनकी महीने भर की आमदनी 15000 रूपये है।
पिछले वित्त वर्ष में अप्रैल-अक्टूबर के दौरान ईपीएफओ ने अपने साथ 43.1 लाख नये सदस्य जोड़े थे। अगर अंशधारक बनाने की यहीं गति बनी रही तो, ये आंकड़ा सालाना 73.9 लाख के आसपास बैठेगा। रिसर्च का आधार बने ईपीएफओ के अंशधारकों की संख्या में राज्य सरकार,केन्द्र सरकार और खुद का रोजगार करने वाले लोगों को शामिल नहीं किया गया है। अगर आंकड़ो में राष्ट्रीय पेंशन योजना के लाभार्थियों की संख्या भी जोड़ ली जाये तो वित्तवर्ष 2018-19 की तुलना में 2020-21 में 39,000 रोजगार के मौके कम ही निकलेगें।
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